Monday 2 November, 2009

फिर करता हए मन

आखिरी बार
एक बार और
बार-बार
करता हय मन
देख आऊं
अपना गांव
नगर से दूर
प्रकृति के पास
उरती हुयी धूल
उंगी हुयी घांश
टूटे खपरैल
जर्जेर छपर
गंगा का अतिक्रमर
बैलो की घंटी
ट्रक्टर की भर-भर
घुरिया काकी की चिल्ल-पो
इमिरिति भौजी की
घन-घन
झानू का आखारा
नंग-धरंग
ताल ठोकते
गांव के नवरतन

फिर करता हय मन
मंगरू चाचा की
चुनौटी चुरा लू
महंगू दादा की
हुक्की गुर-गुरा लू
मचान पैर बैठ
चिरिया ऊरा लू

- डॉ. ऍम. डी. सिंह
 






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