Sunday 13 June, 2010

जीवन कि राहे

ये जीवन क्यों है, हम क्यों है यहाँ ? ये सवाल मन में आने लगा है अब I  ये रात- दिन कि भाग-दौर क्यों करू और ना करू तो क्यों ?  रहता हू शहर में, चाहू रहना अपने गाव में....पर क्यों ? ........तरक्की है यहाँ.........जीवन है यहाँ.....भूख है वहा.......निरासा है वहा......पर चैन है वहा जो है यहाँ नहीं ! क्यों ?

एक मकसद है सामने, हो रहा हू सफल उसमे.....फिर भी हू किम्क्र्ताव्यविमुध ! पसंद है इमानदारी पर स्वीकार कर रहा हू बयिमानो को , करता हू प्यार में विश्वास पर देने लगा हू व्यभिचार कि सलाह....हर चीज में ये दुभिधा क्यों ?

दे देते है लोग प्यार में जान क्यों, क्या जो माँ ने दिया था....वो प्यार नहीं था...........और जो अब हमसफर ने दिया है.....दोनों यादे साथ नहीं रह सकती !.........फिर क्यों ?
लोग कहते है उन्होंने प्यार किया है........वासना  नहीं........पर माँ ने जो दिया  था बच्चे ने वो समझा क्यों नहीं ? उदास क्यों है हम....अगर चला गया कोई.........और न हो तो........फिर किसी कि आने कि ख़ुशी क्यों ?
समझू किसे अच्छा हर पल महसूस होने वाले प्यार के जज्बात को जो मागता है जीवन किसी का........या समझू उसे अच्छा जो आता है पल भर को.........था कौन याद नहीं.......दिया था कुछ तो लिया था कुछ.......अहसास कोई बाकि नहीं !
क्यों न बनू मै चूजी , खोजू सब में ख़ुशी.......ना सोचु क्या है अच्छा और क्या है बुरा क्या है नयतिकता और क्या अनाय्तिकता ...जियू वैषे जैषे जिए कोई परिंदा......करू सबकुछ पर करू न दुसरो कि स्वतंत्रता का हनन.
क्या लाया था जो सोचू कुछ ले जाने को.....पर क्यों जाऊ मै बैठ हार के....जब देखू अनवरत प्रयास एक चीटी का !
इसलिए जिन्दगी का साथ दिए जा रहा हू...बढ़े जा रा हू........!  

4 comments:

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

ये प्रश्न आमजनमानस के भी हैं.
तेज गतिशील दुनिया में भौतिकवाद का अनुपात (जीवन के लिए अनावश्यक वस्तुएं) बढ़ता जा रहा है. फिर चैन तो मुश्किल से ही मिलेगा न.
जो प्यार ममता बचपन में मिला अब उसी यादों के सहारे जीवन है. बाकी एक बाद याद रहे जीवन में हर संभव देने की प्राथमिकता कायम रहे.

स्वागत है आपका. लिखते रहें.

Ra said...

kuchh hi padh paya hoon ,,,yaha kuchh takniki dikkat hai ,,,,jitna padha ,,,achha hai ..jald hi poora padhunga

Jitendra said...

आप सभी को महत्वपूर्ण समीक्षा के लिए धन्यवाद

Unknown said...

खुद्दार एवं देशभक्त लोगों का स्वागत है!
सामाजिक क्षेत्र में कार्य करने वाले हर व्यक्ति का स्वागत और सम्मान करना प्रत्येक भारतीय नागरिक का नैतिक कर्त्तव्य है। इसलिये हम प्रत्येक सृजनात्कम कार्य करने वाले के प्रशंसक एवं समर्थक हैं, खोखले आदर्श कागजी या अन्तरजाल के घोडे दौडाने से न तो मंजिल मिलती हैं और न बदलाव लाया जा सकता है। बदलाव के लिये नाइंसाफी के खिलाफ संघर्ष ही एक मात्र रास्ता है।

अतः समाज सेवा या जागरूकता या किसी भी क्षेत्र में कार्य करने वाले लोगों को जानना बेहद जरूरी है कि इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम होता जा है। सरकार द्वारा जनता से टेक्स वूसला जाता है, देश का विकास एवं समाज का उत्थान करने के साथ-साथ जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसरों द्वारा इस देश को और देश के लोकतन्त्र को हर तरह से पंगु बना दिया है।

भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, व्यवहार में लोक स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को भ्रष्टाचार के जरिये डकारना और जनता पर अत्याचार करना प्रशासन ने अपना कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं। ऐसे में, मैं प्रत्येक बुद्धिजीवी, संवेदनशील, सृजनशील, खुद्दार, देशभक्त और देश तथा अपने एवं भावी पीढियों के वर्तमान व भविष्य के प्रति संजीदा व्यक्ति से पूछना चाहता हूँ कि केवल दिखावटी बातें करके और अच्छी-अच्छी बातें लिखकर क्या हम हमारे मकसद में कामयाब हो सकते हैं? हमें समझना होगा कि आज देश में तानाशाही, जासूसी, नक्सलवाद, लूट, आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका एक बडा कारण है, भारतीय प्रशासनिक सेवा के भ्रष्ट अफसरों के हाथ देश की सत्ता का होना।

शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-"भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान" (बास)- के सत्रह राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से मैं दूसरा सवाल आपके समक्ष यह भी प्रस्तुत कर रहा हूँ कि-सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! क्या हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवक से लोक स्वामी बन बैठे अफसरों) को यों हीं सहते रहेंगे?

जो भी व्यक्ति इस संगठन से जुडना चाहे उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्त करने के लिये निम्न पते पर लिखें या फोन पर बात करें :
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा, राष्ट्रीय अध्यक्ष
भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666
E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in